उत्‍पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi) का खास महत्‍व है. मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से मनुष्‍य के सभी पाप नष्‍ट हो जाते हैं.

उत्‍पन्ना एकादशी 2018: जानिए पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, महत्‍व और व्रत कथा

पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार इसी दिन एकादशी माता का जन्‍म हुआ था

नई दिल्‍ली: उत्‍पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi) का विशेष महत्‍व है. यह एकादशी बताती है कि किस तरह इस व्रत का जन्‍म हुआ था. मान्‍यता है कि इस दिन भगवान विष्‍णु ने माता एकादशी (Ekadashi) को आशीर्वाद देकर इस व्रत की महानता और पूजा विधि के बारे में बताया था. हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार यह एकादशी मार्गशीर्ष कृष्‍ण पक्ष को मनाई जाती है. इस बार उत्‍पन्ना एकादशी 3 दिसंबर को है.


उत्‍पन्ना एकादशी का महत्‍व 
हिन्‍दू धर्म को मानने वालों में उत्‍पन्ना एकादशी का खास महत्‍व है. मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से मनुष्‍य के सभी पाप नष्‍ट हो जाते हैं. यही नहीं जो लोग एकादशी का व्रत करने के इच्‍छुक हैं उन्‍हें उत्‍पन्ना एकादशी से ही व्रत की शुरुआत करनी चाहिए. आपको बता दें कि साल में 24 एकादशियां पड़ती हैं और हर महीने दो एकदाशी आती हैं. कहा जाता है कि उत्‍पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्‍णु ने मुरसुरा नाम के असुर का वध किया था. श्री हरि विष्‍णु की जीत की खुशी में भी इस एकादशी को मनाया जाता है. इस एकादशी में भगवान विष्‍णु और माता एकादशी का विधि-विधान से पूजन किया जाता है.

उत्‍पन्ना एकादशी कब मनाई जाती है?

देश के अलग-अलग हिस्‍सों में उत्‍पन्ना एकादशी अलग-अलग दिनों में मनाई जाती है. उत्तर भारत में यह एकादशी मार्गशीर्ष में पड़ती है, जबकि दक्षिण भारत में इसे कार्तिक मास में मनाया जात है. उत्तर भारत में इस बार यह एकादशी 3 दिसंबर को है.

उत्‍पन्ना एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ:
 02 दिसंबर 2018 को दोपहर 02 बजे से
एकादशी तिथि समाप्‍त: 03 दिसंबर 2018 को दोपहर 01 बजे तक
पारण का समय: 3 दिसंबर 2018 को शाम 06 बजकर 57 मिनट से रात 09 बजकर 05 मिनट तक

उत्‍पन्ना एकादशी की पूजा विधि 
 इस दिन सुबह उठकर स्‍नान करने के बाद स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण कर भगवान श्रीकृष्‍ण का स्‍मरण करते हुए पूरे घर में गंगाजल छ‍िड़
 विघ्‍नहर्ता भगवान गणेश और भगवान श्रीकृष्‍ण की मूर्ति या तस्‍वीर सामने रखें.
 सबसे पहले भगवान गणेश को तुलसी की मंजरियां अर्पित करें.
 इसके बाद विष्‍णु जी को धूप-दीप दिखाकर रोली और अक्षत चढ़ाएं.
 पूजा पाठ करने के बाद व्रत-कथा सुननी चाहिए. इसके बाद आरती कर प्रसाद बांटें.
 व्रत एकदाशी के अलग दिन सूर्योदय के बाद खोलना चाहिए.
  इस दिन अन्‍न ग्रहण नहीं करना चाहिए.
 इस दिन गरीब और जरूरतमंदों को यथाशक्ति दान देना चाहिए.

उत्‍पन्ना एकादशी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में मुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ. वह बड़ा बलवान और भयानक था. उस प्रचंड दैत्य ने इंद्र, आदित्य, वसु, वायु, अग्नि आदि सभी देवताओं को पराजित करके भगा दिया. तब इंद्र सहित सभी देवताओं ने भयभीत होकर भगवान शिव से सारा वृत्तांत कहा और बोले- “हे कैलाशपति! मुर दैत्य से भयभीत होकर सब देवता मृत्युलोक में फिर रहे हैं.”

तब भगवान शिव ने कहा- “हे देवताओं! तीनों लोकों के स्वामी, भक्तों के दु:खों का नाश करने वाले भगवान विष्णु की शरण में जाओ. वे ही तुम्हारे दु:खों को दूर कर सकते हैं.” शिव जी के ऐसे वचन सुनकर सभी देवता क्षीरसागर में पहुंचे. वहां भगवान को शयन करते देख हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे- “हे देवताओं द्वारा स्तुति करने योग्य प्रभू! आपको बारंबार नमस्कार है, देवताओं की रक्षा करने वाले मधुसूदन! आपको नमस्कार है. आप हमारी रक्षा करें. दैत्यों से भयभीत होकर हम सब आपकी शरण में आए हैं. ”

इंद्र के ऐसे वचन सुनकर भगवान विष्णु कहने लगे- “हे इंद्र! ऐसा मायावी दैत्य कौन है जिसने सब देवताओं को जीत लिया है, उसका नाम क्या है, उसमें कितना बल है और किसके आश्रय में है तथा उसका स्थान कहां है? यह सब मुझसे कहो.”

भगवान के ऐसे वचन सुनकर इंद्र बोले- “भगवन्! प्राचीन समय में एक नाड़ीजंघ नामक राक्षस था, उसके महापराक्रमी और लोकविख्यात मुर नाम का एक पुत्र हुआ. उसकी चंद्रावती नाम की नगरी है. उसी ने सब देवताओं को स्वर्ग से निकालकर वहां अपना अधिकार जमा लिया है. उसने इंद्र, अग्नि, वरुण, यम, वायु, ईश, चंद्रमा, नैऋत आदि सबके स्थान पर अधिकार कर लिया है. सूर्य बनकर स्वयं ही प्रकाश करता है. स्वयं ही मेघ बन बैठा है और सबसे अजेय है. हे असुर निकंदन! उस दुष्ट को मारकर देवताओं को अजेय बनाइए.”

यह वचन सुनकर भगवान ने कहा- “हे देवताओं, मैं शीघ्र ही उसका संहार करूंगा. तुम चंद्रावती नगरी जाओ.” इस प्रकार कहकर भगवान सहित सभी देवताओं ने चंद्रावती नगरी की ओर प्रस्थान किया. उस समय दैत्य मुर सेना सहित युद्ध भूमि में गरज रहा था. उसकी भयानक गर्जना सुनकर सभी देवता भय के मारे चारों दिशाओं में भागने लगे. जब स्वयं भगवान रणभूमि में आए तो दैत्य उन पर भी अस्त्र, शस्त्र, आयुध लेकर दौड़े.

भगवान ने उन्हें सर्प के समान अपने बांणों से बींध डाला. बहुत से दैत्य मारे गए. केवल मुर बचा रहा. वह अविचल भाव से भगवान के साथ युद्ध करता रहा. भगवान जो-जो भी तीक्ष्ण बाण चलाते वह उसके लिए पुष्प सिद्ध होता. उसका शरीर छिन्न‍-भिन्न हो गया किंतु वह लगातार युद्ध करता रहा. दोनों के बीच मल्लयुद्ध भी हुआ.

10 हजार वर्ष तक उनका युद्ध चलता रहा किंतु मुर नहीं हारा. थककर भगवान बद्रिकाश्रम चले गए. वहां हेमवती नामक सुंदर गुफा थी, उसमें विश्राम करने के लिए भगवान उसके अंदर प्रवेश कर गए. यह गुफा 12 योजन लंबी थी और उसका एक ही द्वार था. विष्णु भगवान वहां योगनिद्रा की गोद में सो गए.

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मुर भी पीछे-पीछे आ गया और भगवान को सोया देखकर मारने को उद्यत हुआ तभी भगवान के शरीर से उज्ज्वल, कांतिमय रूप वाली देवी प्रकट हुई. देवी ने राक्षस मुर को ललकारा, युद्ध किया और उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया.

श्री हरि जब योगनिद्रा की गोद से उठे, तो सब बातों को जानकर उस देवी से कहा कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है, अत: आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजित होंगी. आपके भक्त वही होंगे, जो मेरे भक्त हैं.