समर्थकों के घिरे कमलनाथ।

समर्थकों के घिरे कमलनाथ।

भोपाल. मध्यप्रदेश विधानसभा की 230 सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस को 114 सीटें मिलीं। वह सपा की एक और बसपा की दो सीटों को मिलने का दावा कर रही है। इसके बाद कांग्रेस की 117 (बहुमत 116) सीटें हो जाएंगी। वहीं, भाजपा को 109 सीटें मिलीं। मंगलवार देर रात कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र लिखकर सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए मिलने का वक्त मांगा।

 

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आगे क्या: सपा-बसपा कांग्रेस के साथ, पर फैसला राज्यपाल के हाथ

एके एंटनी बुधवार को पर्यवेक्षक के रूप में भोपाल पहुंचेंगे। यहां वे पार्टी के नव निर्वाचित विधायकों की बैठक में भाग लेंगे। यह माना जा रहा है कि एंटनी दिल्ली से प्रस्तावित मुख्यमंत्री का नाम सहमति के लिए विधायकों के सामने रखेंगे।

पार्टी में मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में प्रदेेशाध्यक्ष कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम उभर कर सामने आए हैं। बहुमत का जादुई आंकड़ा छूने के लिए कांग्रेस ने बसपा और सपा से चर्चा की है। इसी के चलते कमलनाथ ने बसपा विधायकों से समर्थन प्राप्त करने पार्टी सुप्रीमो मायावती और सिंधिया ने सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव से चर्चा की।

 

ग्वालियर-चंबल, मालवा-निमाड़ में भारी नुकसान

भाजपा को ग्वालियर-चंबल और मालवा-निमाड़ में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। दोनों अंचलों में भाजपा ने 40 सीटें गंवाईं। इनमें से 38 कांग्रेस के पास गई हैं। 2 सीटें अन्य के खाते में आईं। यहां एससी-एसटी और सवर्ण आंदोलन के अलावा किसान आंदोलन का भी बड़ा असर रहा। इसके अलावा एंटी इन्कम्बेंसी फैक्टर ने भी भाजपा का नुकसान किया।

 

राज्य में पिछले 13 साल से शिवराज सिंह चौहान सत्ता में हैं। उन्होंने दावा किया था कि वे सबसे बड़े सर्वेयर हैं और वे जानते हैं कि भाजपा ही जीतेगी। लेकिन, राज्य के 8 एग्जिट पोल्स में से 5 सर्वे में कांग्रेस को आगे दिखाया गया था।

 

मध्यप्रदेश के परिणाम

 

विधानसभा चुनाव भाजपा को सीटें कांग्रेस को सीटें
2018 109 114
2013 165 58

 

कांग्रेस ने भाजपा से ग्वालियर-चंबल रीजन की 13 सीटें छीनीं

 

ग्वालियर-चंबल (34 सीटें) 2013 में सीटें 2018 में सीटें फायदा/नुकसान
भाजपा 20 07 -13
कांग्रेस 12 25 +13
अन्य 02 02 00

 

भाजपा ने मालवा-निमाड़ में 27 सीटें गंवाईं

 

मालवा-निमाड़ (66 सीटें) 2013 में सीटें 2018 में सीटें फायदा/नुकसान
भाजपा 56 29 – 27
कांग्रेस 09 34 +25
अन्य 01 03 +02

 

सत्ता विरोधी लहर का आकलन नहीं कर पाई भाजपा : मध्यप्रदेश के नतीजों पर शिव कुमार विवेक का एनालिसिस

 

  • मध्यप्रदेश में अभी यह कहना कठिन है कि कौन बाजी मारेगा। कई सीटों पर उलटफेर हुआ। कुछ सीटों पर मामूली अंतर से बढ़त दिख रही है जो कभी भी पलट भी सकती है।
  • भाजपा सत्ता विरोधी लहर का आकलन नहीं कर पाई। कांग्रेस का प्रदर्शन प्रदेश के सभी हिस्सों में बेहतर हुआ। चंबल-ग्वालियर, विंध्य व महाकौशल में उसके बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद पहले ही थी, लेकिन उसने मालवा व बुंदेलखंड में भी भाजपा को पीछे धकेला। किसान आंदोलन के गढ़ मंदसौर-नीमच की सीटों पर भाजपा की पकड़ कायम दिखी।
  • ग्वालियर-चंबल ने भाजपा को करारा झटका दिया। दलित-सवर्ण आंदोलन का सबसे ज्यादा असर यहीं पड़ा था। कांग्रेस ने ग्वालियर-चंबल रीजन में भाजपा से 13 सीटें छीनीं।

 

कांग्रेस को भाजपा से 0.1% कम वोट मिले
2013 में भाजपा ने 165 और कांग्रेस ने 58 सीटें जीती थीं। 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 41% जबकि भाजपा को 41.1% वोट मिले। यानी कांग्रेस को सिर्फ 0.1% कम वोट मिले। लेकिन, भाजपा को पिछली बार से 54 सीटें कम यानी 111 और कांग्रेस को 54 सीटों का फायदा हुआ। कांग्रेस को 112 सीटें मिलीं।

 

रिकॉर्ड वोटिंग हुई थी 

राज्य में इस बार 75% मतदान हुआ था। 61 साल में यह रिकॉर्ड वोटिंग पर्सेंट था। 2013 के चुनाव परिणाम से (72.18%) से 2.82 फीसदी ज्यादा रहा। मध्यप्रदेश के 11 जिले ऐसे थे, जहां पिछली बार के मुकाबले तीन फीसदी से ज्यादा वोटिंग हुई। इन 11 जिलों में कुल 47 सीटें हैं। इनमें से भाजपा के पास पिछली बार 37 और कांग्रेस के पास 9 सीटें थीं।

 

मालवा-निमाड़ पर नजर थी

ज्यादा वोटिंग वाले 11 जिलों में से 6 मालवा-निमाड़ के थे। इनमें इंदौर, रतलाम, धार, झाबुआ, आलीराजपुर और नीमच शामिल हैं। इन जिलों में 29 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 25 सीटों पर पिछली बार भाजपा जीती थी और कांग्रेस के पास महज 3 सीटें थीं। राज्य में 2016 में किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर भी मालवा-निमाड़ में ही था। इसके बावजूद मंदसौर-नीमच-मनासा में भाजपा ने जीत दर्ज की थी।

 

शिवराज मप्र में सबसे लंबे समय तक सीएम रहने वाले नेता

मप्र में भाजपा ने 2003, 2008 और 2013 का चुनाव जीता। शिवराज सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले राज्य के इकलौते और देशभर में भाजपा के दूसरे नेता हैं। मप्र में कांग्रेस के दिग्विजय सिंह 10 साल सीएम रहे। भाजपा के मुख्यमंत्रियों के लिहाज से देश में सिर्फ छत्तीसगढ़ के सीएम रमन सिंह उनसे आगे हैं।

 

भाजपा राज्य में लगातार 15 साल सरकार चलने वाली पहली पार्टी है। 1956 में अलग राज्य बनने के 11 साल बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली। लेकिन सिर्फ चार महीने बाद ही पार्टी में टूट के कारण उसे दो साल तक सत्ता से बाहर रहना पड़ा था।

 

भाजपा युग : अब तक तीन मुख्यमंत्री बदले गए

2003 में उमा भारती के नेतृत्व में लड़े गए चुनाव में भाजपा ने 10 साल से मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को सत्ता से बेदखल कर दिया। भाजपा के 15 साल में उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह सीएम रहे।

 

कांग्रेस युग : पार्टी ने 10 मुख्यमंत्री दिए

कांग्रेस ने 32 साल के शासन में 10 मुख्यमंत्री दिए, जिन्होंने 19 बार पद संभाला। कांग्रेस के सिर्फ दो मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू और दिग्विजय सिंह टर्म पूरा कर सके। दिग्विजय ने दो कार्यकाल पूरे किए।

 

3 मुद्दों की वजह से चर्चा में रहा चुनाव

  1. व्यापमं घोटाला : इसे लेकर शिवराज सरकार पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे।
  2. किसान आंदोलन : पिछले साल जून में मंदसौर में प्रदर्शन कर रहे किसानों पर हुई गोलीबारी में 6 की मौत हो गई थी। राहुल गांधी समेत कई कांग्रेसी नेताओं ने प्रदेश का दौरा कर शिवराज सरकार को किसान विरोधी करार दिया।
  3. टेम्पल रन : राज्य की 109 सीटों पर 8 धर्मस्थलों का प्रभाव है। इसके लिए नेताओं ने मंदिरों की यात्राएं कीं। अमित शाह उज्जैन के महाकाल मंदिर गए। राहुल ने चित्रकूट में कामतानाथ मंदिर में मत्था टेका।