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 भारत में सांख्य‍िकीय आंकड़ों में ‘राजनीतिक दखल’ पर ग‍हरी चिंता जताते हुए 108 अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों ने ‘संस्थाओं की आजादी’ को बहाल करने और सांख्यिकीय संगठनों की ईमानदारी को बनाए रखने का आह्वान किया है.

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों में संशोधन करने तथा एनएसएसओ द्वारा रोजगार के आंकड़ों को रोक कर रखे जाने के मामले में पैदा हुए विवाद के मद्देनजर यह बयान आया है. बयान के अनुसार उन्होंने कहा कि दशकों से भारत की सांख्यिकी मशीनरी की आर्थिक से सामाजिक मानदंडों पर उसके आंकड़ों को लेकर बेहतर साख रही है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक विशेषज्ञों ने एक अपील में कहा, ‘आंकड़ों के अनुमान की गुणवत्ता को लेकर प्राय: उसकी (सांख्यिकीय मशीनरी) आलोचना की जाती रही है लेकिन निर्णय को प्रभावित करने तथा अनुमान को लेकर राजनीतिक हस्तक्षेप का कभी आरोप नहीं लगा.’

मिलकर आवाज उठाने का आह्वान

उन्होंने सभी पेशेवर अर्थशास्त्रियों, सांख्यिकीविद और स्वतंत्र शोधकर्ताओं से साथ आकर प्रतिकूल आंकड़ों को दबाने की प्रवृत्ति के खिलाफ आवाज उठाने को कहा. साथ ही उनसे सार्वजनिक आंकड़ों तक पहुंच और उसकी विश्वसनीयता तथा संस्थागत स्वतंत्रता बनाये रखने को लेकर सरकार पर दबाव देने को कहा है.

ये हैं बयान पर दस्तखत करने वाले प्रमुख इकोनॉमिस्ट

 बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में राकेश बसंत (आईआईएम-अहमदाबाद), जेम्स बॉयस (यूनिवर्सिटी आफ मैसाचुसेट्स, अमेरिका), सतीश देशपांडे (दिल्ली विश्वविद्यालय), पैट्रिक फ्रांकोइस (यूनिवर्सिटी आफ ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा), आर रामकुमार (टीआईएसएस, मुंबई), हेमा स्वामीनाथन (आईआईएम-बी) तथा रोहित आजाद (जेएनयू) शामिल हैं. अर्थशास्त्रियों तथा समाज शास्त्रियों के अनुसार यह जरूरी है कि आंकड़े एकत्रित करने तथा उसके प्रसार से जुड़े केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) तथा राष्ट्रीय नमूना सर्वे संगठन (एनएसएसओ) जैसी एजेंसियों को राजनीतिक हस्तक्षेप से परे रखा जाये और वह पूरी तरह विश्वसनीय मानी जाएं.

बयान में इस संबंध में सीएसओ के 2016-17 के संशोधित जीडीपी वृद्धि अनुमान के आंकड़ों का हवाला दिया गया है. इसमें संशोधित वृद्धि का आंकड़ा पहले के मुकाबले 1.1 प्रतिशत अंक बढ़ाकर 8.2 प्रतिशत हो गया जो एक दशक में सर्वाधिक है. इसको लेकर संशय जताया गया है. वक्तव्य में एनएसएसओ के समय-समय पर जारी होने वाले श्रम बल सर्वेक्षण के आंकड़ों को रोकने और 2017- 18 के इन आंकड़ों को सरकार द्वारा निरस्त किये जाने संबंधी समाचार रिपोर्ट पर भी चिंता जताई गई है.

आंकड़ों पर अर्थशास्त्रियों की चिंता को गंभीरता से लें राजनीतिक दल : मोहनन

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के प्रमुख पद से हाल में इस्तीफा देने वाले सांख्यिकी विद पी.सी. मोहनन ने गुरुवार को कहा कि देश में सांख्यिकी आंकड़ों में कथित राजनीतिक हस्तक्षेप पर 108 अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों की चिंता को राजनीतिक दलों को गंभीरता से लेना चाहिए. मोहनन ने कहा, ‘हाल के घटनाक्रमों के मद्देनजर इन सभी प्रमुख लोगों द्वारा दर्ज करायी गई आपत्ति बहुत ही सामयिक और प्रासंगिक है. यह महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक दल इसे गंभीरता से लें. मोहनन ने जनवरी में आयोग के कार्यवाहक चेयरमैन पद से एक और सदस्य के साथ इस्तीफा दे दिया था. इसकी अहम वजह नौकरियों को लेकर सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों को रोका माना गया.