पिछले साढ़े नौ वर्ष में कम बोलने वाले प्रधानमंत्री ने अपने रिटायरमेंट की घोषणा के साथ चुप्पी तोड़ी तो कांग्रेस में सबको पीछे छोड़ गए। एक तरह से अपने विदाई भाषण में प्रधानमंत्री ने अपनी और सरकार की नाकामियों पर ठोस जवाब देने के बजाय भाजपा के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी के खिलाफ अब तक का सबसे तीखा हमला बोला। आम चुनाव से पहले राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में पेश करने का जहां उन्होंने मार्ग प्रशस्त किया, वहीं गुजरात में मोदी को नरसंहार का दोषी करार देते हुए कहा कि अगर वह पीएम बने तो देश में तबाही होना तय है।

करीब सवा घंटे की इस प्रेस कांफ्रेंस के दौरान प्रधानमंत्री ने खुद की सरकार पर उठ रहे सवालों पर जवाब देने की कोशिश की। साथ ही खुद की न बोलने और खराब होती छवि पर सामने आकर जवाब देने का प्रयास भी किया। अगले चुनाव में राहुल गांधी को सुयोग्य उम्मीदवार ठहराने और खुद के रिटायरमेंट की घोषणा से उन्होंने कांग्रेस में नेतृत्व का भ्रम भी दूर कर दिया।

मोदी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के 2007 में दिए ‘मौत के सौदागर’ बयान से भी आगे निकलते हुए प्रधानमंत्री ने आम चुनाव से पहले कांग्रेस की लाइन भी तय कर दी। हालांकि, सरकार पर लगे अकर्मण्यता, फैसले न लेने और भ्रष्टाचार जैसे सवालों पर प्रधानमंत्री के जवाब मौन जैसे ही थे। कांग्रेस के भीतर खुद के खिलाफ नाराजगी पर मनमोहन ने सीधा जवाब नहीं दिया, लेकिन कहा कि उनसे प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने को कभी किसी ने नहीं कहा।

जाहिर तौर पर उन्होंने साफ कर दिया कि वह आम चुनाव तक इस्तीफा देने नहीं जा रहे। उन्होंने माना, ‘हम लगातार बढ़ती महंगाई को काबू करने में नाकाम रहे। महंगाई कांग्रेस के प्रति लोगों की नाराजगी का कारण हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय उत्पाद मूल्यों व ईंधन कीमतों की वृद्धि ने काम मुश्किल बनाया।’

अपनी पारी समाप्ति की घोषणा के समय 81 वर्षीय मनमोहन ने मोदी के खिलाफ जो तेवर दिखाए, ऐसे पूरे साढ़े नौ वर्ष में कभी नहीं दिखे। उन्होंने कहा कि अगला पीएम संप्रग से होगा। मनमोहन सिंह को अपने भाषणों से पूरे देश में उपहास का पात्र बनाने वाले मोदी को उन्होंने करारा जवाब दिया। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैं मोदी की किसी मेरिट पर तो नहीं जाता हूं, लेकिन मैं मानता हूं कि अगर वह प्रधानमंत्री बनते हैं तो देश के लिए विनाशकारी होगा।’

इसके साथ ही उन्होंने गुजरात के 2002 दंगों में मोदी की असफलता को दिखाते हुए उनके मजबूत नेतृत्व पर कटाक्ष किया। राहुल गांधी के सीधे प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने पर तो मनमोहन ने कुछ नहीं कहा, लेकिन कहा कि उनमें सारी खूबियां हैं। सत्ता के दो केंद्रों को भी उन्होंने कामयाब बताया और कहा कि दो कार्यकाल न सिर्फ गठबंधन सरकार चली, बल्कि सही फैसले भी हुए।

पार्टी नेतृत्व ने सरकार की गलतियों को दूर करने में मदद की। उन्होंने माना कि राहुल सरकार में आते तो उन्हें मजबूती मिलती, लेकिन संगठन को उनकी जरूरत ज्यादा थी।

राहुल गांधी पर

‘अगले चुनाव के बाद मैं नए प्रधानमंत्री को जिम्मेदारी सौंप दूंगा। मैं दौड़ से बाहर हूं और राहुल गांधी इसके सुयोग्य उम्मीदवार हैं।’

चुप रहने पर

‘जहां तक बोलने का सवाल है, जब जब जरूरत पड़ी है पार्टी फोरम में जरूर बोलता रहा हूं और आगे भी बोलता रहूंगा।’

खुद की छवि पर

‘मौजूदा मीडिया और विपक्ष के बजाय इतिहास अधिक उदारता से मेरा आकलन करेगा।’

सत्ता के दो केंद्र

‘यह प्रयोग बेहद कामयाब रहा और पार्टी नेतृत्व के कहने पर कुछ फैसलों को बदलने में कोई खामी नहीं है।’

अधूरे एजेंडे पर

‘भ्रष्टाचार रोकथाम के अटके पड़े पांच-छह विधेयकों को संसद से पारित कराने के लिए प्रयास किया जाएगा।’

महंगाई पर

‘खाद्य उत्पादों के दामों को काबू में रखने के लिए आपूर्ति बढ़ाई जाएगी। मंहगाई पर लगाम के लिए हर संभव प्रयास होगा।’

रोजगार पर

‘उत्पादन क्षेत्र में रोजगार की कमी चिंता का कारण है। मध्यम और छोटे उपक्रमों की सहायता के प्रयास किए जाएंगे।’

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हां मैं मानता हूं

-मुझे खेद है सच्चर समिति की सिफारिशों पर क्रियान्वयन का लाभ सब लोगों तक नहीं पहुंच सका।

-कामकाज में अनियमितताएं हुई हैं। हालांकि, मीडिया और कैग ने उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया।

-ढांचागत परियोजनाओं की अड़चनों और परियोजना मंजूरी में देरी ने अर्थव्यवस्था की सुस्ती बढ़ाई।