जबलपुर। महाकोशल के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल नेताजी सुभाषंचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में स्वास्थ्य सेवाओं की बड़ी लापरवाही का मामला सामने आया है। नगर निगम अध्यक्ष सुमित्रा बाल्मीक की चचेरी बहन सोनू डागौर(28) अस्पताल के गेट पर तीन घंटे तक तड़पती रही। स्वास्थ्य राज्य मंत्री से लेकर डाक्टरों तक से लगाई गुहार सोनू के काम नहीं आई और अंतत: सोनू ने अस्पताल के गेट पर ही दम तोड़ दिया।

निगम अध्यक्ष ने पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करते हुए सख्त कार्रवाई की बात जिम्मेदारों से कही है।

पहले हां फिर, पलट गए डाक्टर

बहनोई विजय ने मदद मांगी और मेडिकल कॉलेज में इलाज के साथ डायलिसिस कराने को कहा। अध्यक्ष ने बताया कि उन्होंने राज्यमंत्री शरद जैन को फोन पर जानकारी दी। उनके पीए ने मेडिकल में डॉक्टर से बात की तो बताया गया कि एक वेंटीलेटर खाली है।

शाम छह बजे सोनू को लेकर मेडिकल पहुंची। यहां डाक्टर वेंटीलेटर खाली होने की बात से पलट गए। लापरवाही के चलते मेरी बहन तीन घंटे तक तड़पती रही और आखिर में दम तोड़ दिया।

डाक्टरों से बात करने पर ही लाई थी मेडिकल

बहन की मौत से आहत निगम अध्यक्ष ने बताया कि उनकी बहन की दोनों किडनी फेल हो गई थी। डायलिसिस के लिए वेंटीलेटर पर रखना जरूरी था। राज्यमंत्री जैन के पीए के माध्यम से मेडिकल के चिकित्सक से बात करके ही वहां ले जाया गया था।

जब इलाज की बात आई तो चिकित्सकों ने वेंटीलेटर और बेड खाली न होने का हवाला देते हुए हाथ खड़े कर दिए। उन्होंने बताया कि कजरवारा निवासी उनकी चचेरी बहन सोनू की चार दिन पहले उसकी तबियत खराब हो गई। बहनोई विजय डागौर ने उसे स्थित निजी अस्पताल में भर्ती कराया था। वहां डाक्टरों ने दोनों किडनी खराब बताई और वेंटीलेटर पर रखते हुए डायलिसिस शुरू कर दी।

क्या कहते हैं पीडि़त और जिम्मेदार

मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों की संवेदना शून्य हो चुकी है। एक जनप्रतिनिधि के रिश्तेदार और राज्यमंत्री के पीए से बात करके भी जब चिकित्सक मुकर जा रहे हैं तो आम मरीजों के साथ यहां क्या होता होगा। राज्यमंत्री ने भी इसे गंभीरता से लिया है और सख्त कार्रवाई के लिए लिखित शिकायत मांगी है। मैं सागर में हूं। निगम अध्यक्ष का फोन आया था। मैने पीए को मदद के लिए बोला था। मेरी खुद किसी चिकित्सक से बात नहीं हुई थी। निगम अध्यक्ष की बहन का निजी अस्पताल में पहले से इलाज चल रहा था। लास्ट स्टेज में वे उसे लेकर मेडिकल कॉलेज गईं थीं। फिर भी इलाज क्यों नहीं मिला। इसकी जांच कराउंगा।