जबलपुर। प्राकृतिक सुंदरता से खूबसूरत कही जाने वाली संस्कारधानी में प्रतिवर्ष एकत्र हो रहा 225 टन ‘ई-वेस्टÓ नई मुसीबत लेकर आने वाला है। इस खतरनाक इलेट्रॉनिक कचरे के निस्तारण के लिए प्रशासन व नगर निगम के पास न कोई नीति है और न प्रबंधन का इंतजाम। इसके चलते कुछ वर्षों में ई- कचरे का ऐसा पहाड़ खड़ा हो जाएगा जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए घातक साबित हो सकता है। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने जबलपुर में सर्वे के बाद जारी रिपोर्ट में ई-कचरे की समस्या के प्रति आगाह किया है, साथ ही तत्काल ई-वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना व अन्य उपाय करने की जरूरत बताई।

कहां- कितना ई-कचरा

स्थान     ई कचरा (किग्रा/प्रतिवर्ष)

घर 185636.336

व्यावसायिक 48806.581

रिपेयरिंग शॉप 55011.00

कबाड़ खाना 12000.00

करवाया ई-वेस्ट सर्वे

मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नेप्रदेश के चार प्रमुख शहरों जबलपुर, भोपाल, ग्वालियर और

इंदौर में ई-वेस्ट के लिए सर्वे करवाया। इसमें पता चला कि जबलपुर में प्रतिवर्ष करीब 2 लाख 26 हजार 53 किलोग्राम (215 टन) ई-कचरा एकत्र हो रहा है। सर्वे में 500 घरों व इतनी व्यावसायिक इकाइयों को शामिल किया। इसमें चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। सर्वे टीम को 500 घरों में से 403 घरों से जानकारी मिली। इन घरों में 466 टीवी, 251 कम्पयूटर, 1154 मोबाइल फोन, 334 फ्रिज, 33 एयर कंडीशनर व 111 वॉशिंग मशीन का उपयोग किया गया। इनमें पांच साल में 148 टेलीविजन, 16 कम्पयूटर, 283 मोबाइल फोन, 30 फ्रिज, 11 एयरकंडीशनर और 14 वाशिंग मशीनों को कबाड़ में डाल दिया गया। इन्हीं घरों में प्रतिवर्ष 1676 किलो ई-वेस्ट निकला। व्यापारिक सेटर में ऐसे ही हालात सामने आए। सर्वे में प्राप्त आंकड़ों में पता चला कि शहर पर प्रतिवर्ष ई-कचरे का भारी बोझ पड़ रहा है।

ई-वेस्ट में क्या

38 प्रतिशत लोहे की सामग्री

28 प्रतिशत लौह रहित पदार्थ

19 प्रतिशत ह्रश्वलास्टिक

04 प्रतिशत कांच का सामान

11 प्रतिशत सिरेमिक रबर व अन्य

क्या है ई-कचरा

कंप्यूटर, मोबाइल फोन, टेलीविजन, फ्रिज, वाशिंग मशीन, इलेट्रॉनिक खिलौनों समेत हर तरह के अनुपयोगी इलेट्रिकल और इलेट्रॉनिक सामान से पैदा होने वाला कबाड़ ई-कचरा कहलाता है। नित नई तकनीक आने से इलेट्रिकल और इलेट्रॉनिक उत्पाद बार-बार बदले जा रहे हैं या तकनीकी खराबी के चलते उन्हें फैंका जा रहा है। अपग्रेडेशन के चलते पुराने उत्पादों के कबाड़ ढेर लगता है और निस्तारण के अभाव में समस्या विकराल रूप लेती जा रही है।

विषैले तत्वों की भरमार

ई-कचरे में लोहा व लौह रहित मटेरियल होता है। लौह रहित सामग्री में कॉपर, एल्यूमिनियम, सोना, चांदी,प्लेटिनम व पैलेडियम इत्यादि धातुएं होती है। जिसमें सीसा, मरकरी, आर्सेनिक कैडमियम, सेलेनियम और क्रोमियम में 38 प्रकार के खतरनाक विषैले तत्व होते हैं। इन घातक तत्वों की वजह से ई-कचरे को खतरनाक अपशिष्ट की श्रेणी में रखा गया है।

खतरा यहां भी

मनमाने तरीके से निस्तारण से ये नगर निगम की ओर से संग्रहित ठोस कचरे में ई-कचरा भी मिल रहा है। ये पर्यावरण के लिए ज्यादा खतरनाक है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सर्वे में पता

चला कि पांच साल में जिन 58 फीसदी लोगों ने मोबाइल की बैटरी बदली, उसमें 54 फीसदी ने बैटरियां नगर निगम की ओर उठाए जाने वाले कचरे में फैंकी।

किया आगाह

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैज्ञानिक डॉ. अजय खरे ने बताया कि ई वेस्ट के निस्तारण के लिए जल्द ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना नहीं की गई तो महानगरों की तरह गंभीर समस्या पैदा हो जाएगी। उत्पादकों, उपभोक्ताओं, निर्माताओं के लिए डिस्पोजल की कोई नीति

नहीं। जागरुकता का अभाव। निपटारे की गाइडलाइन तय करने में सरकार व रेगुलेटरी एजेन्सी की भूमिका अहम। बेहतर मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए जागरुकता कार्यक्रम

आयोजित करने होंगे।

सेहत के लिए घातक

इलेट्रीकल और इलेट्रॉनिक सामानों का कचरा सेहत के लिए बहुत ही घातक है। इनसे निकलने वाले कैमिकल के असर से किडनी, हृदय और चमड़ी सबन्धी बीमारियां होती है।

सुनिश्चित विनष्टïीकरण ही इसका समाधान है। लोगों को भी जागरूक होना पड़ेगा तभी इससे बचाव हो सकता है।