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ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने बुधवार को केंद्र सरकार पर राज्य के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया। उन्होंने केंद्र की कई योजनाओं पर हमला किया लेकिन हर किसी को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजू जनता दल (बीजद) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सरकार बनाने के लिए समर्थन देगी या नहीं।

बीजद के 21वें स्थापना दिवस पर बोलते हुए पटनायक ने अपने दिवंगत पिता और पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के ओडिशा दृष्टिकोण को याद किया। उन्होंने कहा, ‘बीजू बाबा सही थे। उन्होंने कहा था कि मुझे वित्तीय स्वायत्ता दे दो और मैं ओडिशा को दक्षिण एशिया के उच्च राज्यों में से एक बना दूंगा। मुझे केंद्रीय सहायता या अनुदान नहीं चाहिए। मैं ओडिशा को राज्य के पैसों से विकसित करुंगा।’

भाजपा पर हमला करते हुए पटनायक ने केंद्र पर 9 सवाल दागे। जिसमें मोदी सरकार की योजनाओं जैसे कि उज्जवला जिसके अतंर्गत गरीबों को गैस कनेक्शन दिए जाते हैं, टेलिकॉम कनेक्टिविटी प्लान, राष्ट्रीय राजमार्गों की योजनाओं को पूरा करना और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का मजाक उड़ाया गया। उन्होंने कहा कि भारत संचार निगम लिमिटेड एक बहुत बड़ा टेलिकॉम नेटवर्क है लेकिन ओडिशा के आधे गांवों में यह नहीं पहुंचा है। मोबाइल पर बात करने के लिए आपको या तो ऊंचा उठना पड़ना है या फिर पेड़ पर चढ़ना सीखना पड़ता है।

ओडिशा के मुख्यमंत्री ने पीएम मोदी की उजज्वला योजना का उपहास उड़ाया जिसके तहत राज्य के 3 लाख लोगों को मुफ्त गैस कनेक्शन दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि गैस सिलिंडरों की बढ़ती मांग के कारण बहुत से लोग गैस को दोबारा नहीं भरवा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘रेलवे टिकट में कुछ बदलाव हुए हैं लेकिन वह प्लेटफॉर्म और ट्रेन टिकट में हुए हैं। फसल बीमा योजना का लाभ किसानों की बजाए निजी बीमा कंपनियों को मिल रहा है।’

उन्होंने कहा, ‘अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सहायता करने वाले पैसे को रोक दिया गया है। यहां तक कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति का पैसा भी दो साल पहले रोक दिया गया था।’ पटनायक ने पीएम मोदी की रणनीति को अपनाते हुए बिना उनका नाम लिए उनकी आलोचना की। ठीक यही रणनीति पीएम ने 24 दिसंबर को भुवनेश्वर में हुई सभा में अपनाई थी। उन्होंने ओडिशा में बढ़ते हुए भ्रष्टाचार की आलोचना तो की थी लेकिन पटनायक का नाम कहीं नहीं लिया था।

पटनायक की पीएम मोदी को लेकर साधी गई रणनीतिक चुप्पी ने एक बार फिर से दोनों दलों के साथ आने की चर्चाओं को हवा देने का काम किया है। दोनों पार्टियां 1998 और 2009 में गठबंधन में रही हैं। माना जा रहा है कि दोनों एक बार फिर से नजदीक आ रहे हैं। हालांकि कंधमल दंगों में भगवा ब्रिगेड का हाथ होने से नाराज पटनायक ने 2009 में भाजपा से गठबंधन उस समय तोड़ लिया था जब विधानसभा चुनाव में कुछ ही हफ्ते बचे थे।