देश की लोकप्रिय छोटी कारें मारुति ऑल्टो 800, टाटा नैनो, फोर्ड फिगो, हुंडई आइ10 और फॉक्सवैगन पोलो सुरक्षा मानकों पर खरी नहीं उतर सकी हैं। ब्रिटेन स्थित स्वतंत्र संगठन ग्लोबल एनसीएपी के दुर्घटना संबंधी क्रैश टेस्ट में ये सभी कारें फेल हुई हैं। यानी सड़क दुर्घटनाओं में इन कारों के यात्रियों को जानलेवा चोटें लगने के जोखिम काफी ज्यादा हैं।

एनसीएपी उपभोक्ताओं की सुरक्षा के नजरिये से वाहन सुरक्षा अभियान संचालित करता है। संगठन की रिपोर्ट में कहा गया कि इन कारों की 64 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से सामने से टक्कर होने पर अगली सीट पर बैठे लोगों के बचने की कोई गुंजाइश नहीं है।

ऑल्टो 800, नैनो और आइ10 की बॉडी कमजोर है और टक्कर होने पर पूरी तरह से टूट जाती है। बॉडी की कमजोरी के कारण इनमें लगे एयरबैग भी गंभीर चोटों का जोखिम कम करने में सक्षम नहीं हैं। इन तीनों में सिर्फ आइ10 में ही एयरबैग होते हैं। वहीं, फोर्ड फिगो और फॉक्सवैगन पोलो की बॉडी कुछ हद तक मजबूत है लेकिन ड्राइवर और उसकी बगल वाली सीट के एयरबैग्स को और बेहतर करने की जरूरत है।

एनसीएपी का कहना है कि उसने इन मॉडलों पर संयुक्त राष्ट्र का मूलभूत क्रैश टेस्ट भी किया। इस टेस्ट में 56 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से कार के 40 फीसद हिस्से पर सामने की टक्कर का परीक्षण किया गया। इस टेस्ट में भी ये पांचों मॉडल असफल रहे। इन कारों का उत्पादन करने वाली कंपनियों के प्रवक्ताओं का इस मसले पर कहना है कि उनके उत्पाद भारतीय सुरक्षा नियमों के अनुरूप हैं।

देश में पिछले साल बेची गई कुल नई कारों में इन पांचों कारों की हिस्सेदारी 20 फीसद रही। एनसीएपी के चेयरमैन मैक्स मोसले ने कहा कि ढांचे की कमजोरी और एयरबैग उपलब्ध नहीं होने से भारतीय उपभोक्ताओं का जीवन जोखिम में है। ग्राहकों को यह जानने का अधिकार है कि उनके वाहन कितने सुरक्षित हैं। भारतीय ग्राहक भी उतनी सुरक्षा हासिल करने की उम्मीद कर सकते हैं जितनी कि दुनिया के अन्य देशों के उपभोक्ताओं को हासिल हो रही है। संगठन ने कहा कि भारत एक बड़े बाजार और छोटी कारों के उत्पादन केंद्र के रूप में उभरा है। लेकिन चिंता कि बात है कि यह अभी भी सुरक्षा के मामले में 20 साल पीछे है।