एससी-एसटी संशोधन बिल पर आज लोकसभा में बहस होगी. इस दौरान बीजेपी ने अपने सभी सांसदों को सदन में मौजूद रहने के लिए व्हिप जारी किया है.

फिर आएगा पुराना SC/ST एक्‍ट, इन 3 संशोधनों से मोदी सरकार पलटेगी सुप्रीम कोर्ट का फैसला

नई दिल्ली: एससी-एसटी संशोधन बिल पर आज लोकसभा में बहस होगी. इस दौरान बीजेपी ने अपने सभी सांसदों को सदन में मौजूद रहने के लिए व्हिप जारी किया है. कांग्रेस समेत ज़्यादातर विपक्षी दल इस बिल के समर्थन में हैं, जिसकी वजह से आज बिल के पास होने की उम्मीद है. शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत ने बिल पेश किया था. संशोधित बिल के साथ ही SC-ST एक्ट अपने पुराने मूल स्वरूप में आ जाएगा. इसी साल 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने 1989 (नवासी) के एक्ट के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी थी. जिसके बाद विपक्षी दलों के अलावा दलित संगठनों ने सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था.

फिर आएगा पुराना SC/ST एक्ट 1) सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
FIR से पहले DSP स्तर पर जांच
संशोधन
शिकायत मिलते ही FIR

2) सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
गिरफ़्तारी के लिए इजाज़त ज़रूरी
संशोधन
बिना इजाज़त गिरफ़्तारी

3) सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
अग्रिम ज़मानत पर पूरी तरह रोक नहीं
संशोधन
अग्रिम ज़मानत का प्रावधान नहीं

 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे ये दिशा निर्देश 

1. कोई ऑटोमैटिक गिरफ्तारी नहीं होगी, गिरफ्तारी से पहले आरोपों की जांच जरूरी. FIR दर्ज करने से पहले DSP स्तर का पुलिस अधिकारी प्रारंभिक जांच करेगा.
2. इस मामले में अग्रिम जमानत पर भी कोई संपूर्ण रोक नहीं है. गिरफ्तारी से पहले जमानत दी जा सकती है. अगर न्यायिक छानबीन में पता चले कि पहली नजर में शिकायत झूठी है.
3. यदि कोई आरोपी व्यक्ति सार्वजनिक कर्मचारी है, तो नियुक्ति प्राधिकारी की लिखित अनुमति के बिना और यदि व्यक्ति एक सार्वजनिक कर्मचारी नहीं है तो जिला के वरिष्ठ अधीक्षक की लिखित अनुमति के बिना गिरफ्तारी नहीं होगी. ऐसी अनुमतियों के लिए कारण दर्ज किए जाएंगे और गिरफ्तार व्यक्ति व संबंधित अदालत में पेश किया जाना चाहिए.
4. मजिस्ट्रेट को दर्ज कारणों पर अपने विवेक से काम करना होगा और आगे आरोपी को तभी  में रखा जाना चाहिए जब गिरफ्तारी के कारण वाजिब हो. यदि इन निर्देशों का उल्लंघन किया गया तो ये अनुशासानात्मक कार्रवाई के साथ-साथ अवमानना कार्रवाई के तहत होगा.

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1.  इस तरह के अपराध की शिकायत मिलते ही पुलिस FIR दर्ज करे. केस दर्ज करने से पहले जांच जरूरी नहीं.
2. गिरफ्तारी से पहले किसी की इजाजत लेना आवश्यक नहीं है.
3. केस दर्ज होने के बाद अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं होगा. भले ही इस संबंध में पहले का कोई अदालती आदेश हो.