मंदसौर।

शिक्षा विभाग की स्कूलों की मान्यता जारी करने के कार्य में लापरवाही का असर आरटीई (निशुल्क शिक्षा के अधिकार) के तहत होने वाले निशुल्क एडमिशन में भी हो रहा है। यही वजह है कि अभी जिले में 180 स्कूलों को मान्यता नहीं मिल पाई है और 3265 सीटें खाली पड़ी हैं। शिक्षा अधिकारी सिर्फ 70 स्कूलों की मान्यता का कार्य अधूरा बता रहे हैं और कह रहे हैं कि आरटीई में प्रवेश के अंतिम तिथि बढ़ाकर 5 सितंबर कर दी गई है। इसके चलते अभिभावक शिक्षा सत्र के दो माह बीतने, बार-बार अंतिम तिथि बढ़ने और बच्चों को प्रवेश नहीं मिलने से परेशान हैं।

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जिले में आरटीई के तहत प्रवेश देने के लिए 576 स्कूलों की प्रथम कक्षाओं की कुल 4602 सीटें निर्धारित की गई थीं। इसमें 296 स्कूलों को मान्यता मिल जाने से वहां प्रवेश हो चुके हैं लेकिन बाकी स्कूल अभी भी मान्यता का इंतजार कर रहे हैं। मान्यता नहीं मिलने से पोर्टल पर स्कूलों के नाम नजर नहीं आ रहे हैं और आरटीई के तहत बच्चों का प्रवेश भी नहीं हो पा रहा है। तीन बार आवेदन के लिए तारीख बढ़ाने के बाद अब एक बार फिर 5 सितंबर तक तारीख बढ़ाई गई है। इसमें पहले चरण में किसी कारणवश प्रवेश नहीं मिलने वालों को भी अवसर दिया जा रहा है। इधर नए सत्र की शुरुआत हुए ढाई माह हो गए है और स्कूलों में पढ़ाई शुरू हो गई है।

1337 को ही मिल पाया प्रवेश

जिले में आरटीई के लिए उपलब्ध कुल 4602 सीटों के लिए अभिभावकों ने आवेदन किए थे। इनमें 2095 को ही लॉटरी में स्थान मिला। सत्यापन के बाद महज 1337 बच्चों को ही प्रवेश मिल सका। अभी भी जिले में 3265 सीटें खाली हैं जबकि पिछले साल जुलाई में ही 4200 बच्चों को प्रवेश दिया जा चुका था। इस बार भी अभिभावकों को उम्मीद थी कि पहले ही प्रयास में किसी न किसी स्कूल में बच्चों को प्रवेश मिल जाएगा।

मान्यता के लिए गठित किया था दल

जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में राधेश्याम सखवाल मान्यता संबंधी कार्य देख रहे थे। कुछ दिनों पहले कलेक्टर के आकस्मिक निरीक्षण के बाद जिपं सीईओ रानी बाटड़ ने लेखापाल नवीन दीगर और राधेश्याम सखवाल को निलंबित कर दिया था। उनके जाने के बाद 20 दिनों तक मान्यता का कार्य पेडिंग रहा। फिर हायर सेकंडरी के व्याख्याता केके शर्मा सहित चार लोगों के दल का गठन किया गया। बीआरसी ने स्कूलों के निरीक्षण में कमियां बता दी। इसके कारण दल भी बचे हुए स्कूलों का निराकरण नहीं कर पाया।

शिक्षा अधिकारी को जानकारी नहीं

आरटीई के तहत प्रवेश का काम जिला शिक्षा केंद्र के माध्यम से होता है। शिक्षा अधिकारी सिर्फ 70 स्कूलों की मान्यता का काम अधूरा होने की बात कह रहे हैं। लेकिन शिक्षा केंद्र और पोर्टल के अनुसार 180 स्कूलों की मान्यता का काम पेंडिंग है। अभी भी मान्यता को लेकर शिक्षा विभाग में हलचल नजर नहीं आ रही। 5 सितंबर तक आवेदन करने के बाद भी अगर मान्यता जारी नहीं होती है तो बच्चों को प्रवेश नहीं मिल पाएगा।

बार-बार आदेश में बदलाव

बार-बार आदेश में बदलाव के कारण शुरुआत से ही नई प्रक्रिया से अभिभावक असमंजस में रहे। 15 जुलाई से निशुल्क प्रवेश के लिए प्रक्रिया शुरू की गई, जो 26 जुलाई तक चली। इस बीच चार बार नियमों में परिवर्तन किया गया। नियमों संबंधी किए गए बदलाव के कारण सबसे ज्यादा बच्चे अपात्र हुए। पहले 16 जून तक नर्सरी के लिए 3 प्लस और पहली में 6 प्लस उम्र अनिवार्य थी। इससे एक भी दिन कम होने से दस्तावेज अपात्र घोषित किए जा रहे थे। बाद में इस नियम में परिवर्तन किया गया। पहले ही आवेदन कर चुके बच्चों को अपात्र बता दिया गया। बाद में 11 और 12 अगस्त को नियमों में हेरफेर किया गया।

70 स्कूल बाकी हैं

-सिर्फ 60-70 स्कूलों की मान्यता का काम बाकी है। बाबुओं के निलंबन का फर्क पड़ा है। नए व्यक्ति को काम समझकर करने में समय लगता है। हमने इस काम के लिए चार लोगों का दल भी गठित किया था। बीआरसी के निरीक्षण में कमियां मिलने के कारण मान्यता नहीं दी जा सकी।-बीएस पटेल, जिला शिक्षा अधिकारी

196 की मान्यता बाकी

– मान्यता नहीं होने के कारण बच्चों प्रवेश नहीं दिया जा सका। अभी भी 196 स्कूलों का मान्यता नहीं मिली है। हालांकि जिनको पहले चरण में प्रवेश नहीं मिला है, वे 5 सितंबर तक फिर से आवेदन कर सकते हैं लेकिन मान्यता नहीं मिलती है तो प्रवेश नहीं मिल पाएगा।-विजय जोशी, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला शिक्षा केंद्र