अब वह मुझे बुआ बुलाती है और मैं उसे बाबू:एएसपी (महिला अपराध प्रकोष्ठ) लक्ष्मी सेठिया का।

मंदसौर दुष्कर्म कांड : अब वह मुझे बुआ बुलाती है और मैं उसे बाबू
इंदौर। अपनी पूरी नौकरी में मैं इस ड्यूटी को कभी नहीं भूल पाऊंगी। जब मैं तीन महिला पुलिसकर्मियों के साथ मंदसौर के अस्पताल से बच्ची को लेकर पहुंची तो वह गंभीर हालत में थी। बस यही प्रार्थना थी कि बच्ची ठीक हो जाए। एमवाय अस्पताल में सभी के सहयोग व बेहतर इलाज से वह स्वस्थ हो चुकी है। अब हालत यह है कि वह मेरे बगैर व मैं उसके बगैर नहीं रह पाती। वह मुझे बुआ बुलाती है और मैं उसे प्यार से बाबू बोलती हूं। 34 दिनों तक ड्यूटी करने व उसके साथ रहते हुए उससे एक आत्मीय रिश्ता कायम हो चुका है। उसे अपने हाथ से खाना खिलाना व तैयार करना दिनचर्या बन चुका है।

यह कहना है मंदसौर दुष्कर्म कांड की पीड़ित बच्ची की सुरक्षा में लगी मंदसौर की एएसपी (महिला अपराध प्रकोष्ठ) लक्ष्मी सेठिया का।

उन्होंने ‘नईदुनिया” से बात करते हुए अपनी मन:स्थिति बयां की। बच्ची के बारे में बात करते-करते उनके आंसू बह निकले। किसी तरह अपने इस भावनात्मक पहलू को छिपाकर वे वापस ड्यूटी के लिए चली गईं।

सोमवार को मंदसौर सीएसपी राकेश मोहन शुक्ल एमवाय अस्पताल पहुंचे। उन्होंने बच्ची सहित उसके माता-पिता व डॉक्टरों से मुलाकात की। उन्होंने बताया कि पूरा मामला कोर्ट पहुंच चुका है। पुलिस की तरफ से भी सभी साक्ष्य पेश किए गए हैं। अब कोर्ट अपना फैसला सुनाएगी।

जब सीएसपी बच्ची का हालचाल जानकर वापस लौट रहे थे तो उन्हें छोड़ने आईं सेठिया ने पहली बार चर्चा की। बच्ची की सुरक्षा व विशेष निगरानी रखने के कारण वे किसी से बात नहीं करती हैं।

उन्होंने बताया कि यहां डॉक्टरों की टीम ने इलाज किया। अधीक्षक वीएस पाल ने दिल्ली-मुंबई के डॉक्टरों को बुलाकर इलाज कराया। मनोचिकित्सकों की भी व्यवस्था कर बच्ची को इस सदमे से बाहर निकालने की कोशिश की। यहां तक कि उसे रोजाना आधा घंटा कहानियां सुनाते और मनोवैज्ञानिक रूप से मजबूत बनाने को लेकर प्रयास किया गया। उन्होंने बताया कि पॉक्सो एक्ट के तहत बच्ची की पहचान उजागर न हो, इसलिए इतनी सख्ती जरूरी है।

तीन दिन तक नहीं सोईं, जूते हुए चोरी

सेठिया के मुताबिक यहां ड्यूटी के लिए आने के बाद तीन दिन तक लगातार उन्होंने निगरानी रखी। वे जांच से लेकर आईसीयू के अंदर भी हर समय उसके साथ रही, इसीलिए तीन दिन तक सोई भी नहीं। इससे उनके पैरों में सूजन आ गई थी। आईसीयू के बाहर से ही उनके जूते भी चोरी हो गए। तब से वे चप्पल पहनकर ही ड्यूटी कर रही हैं।

खाना खिलाने से पहले चखकर देखा

बच्ची को भर्ती करने के बाद से लगातार हर गतिविधि पर नजर रखने की जिम्मेदारी भी उन्हें दी गई। बच्ची ने स्वस्थ होने के बाद क्या और कितना खाया-पीया, क्या नहीं खाया, कितना खाना छोड़ा, उसे खाने में क्या और कौन लाकर दे रहा है, यह भी रिकार्ड रखा। खाने-पीने की चीजों को पहले वे चखकर देखती हैं कि स्वाद कैसा है।

नर्सें बनी मौसी-दीदी, डॉक्टर बने अंकल

एमवायएच के जिस प्राइवेट वार्ड में बच्ची भर्ती है, वहां की सभी नर्सों से उसे लगाव हो गया है। वह किसी को दीदी तो किसी को मौसी कहकर, जबकि डॉक्टरों को अंकल पुकारने लगी है। नर्सों के साथ सांप-सीढ़ी, वीडियो गेम, लूडो खेलना उसकी दिनचर्या में शामिल हो चुका है।

समाज में लोगों की विचारधारा बदलना जरूरी

सेठिया ने बताया कि समाज में ऐसे अपराध रोकने के लिए कानूनी स्तर पर कड़े प्रयास किए गए हैं। इसके अलावा समाज में लोगों की विचारधारा में बदलाव करना जरूरी है। बच्चों को गुड टच, बेड टच के बारे में बताया जाए। अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा होना चाहिए। सरकार के स्तर पर भी इस तरह के जघन्य अपराध रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं।